शुक्रवार, 27 दिसंबर 2013

"नैऋत्यकोण एवं पश्चिम दिशा" भी वास्तु के योग्य बनायें ?{झा शास्त्री}

  • "नैऋत्यकोण एवं पश्चिम दिशा" भी वास्तु के योग्य बनायें ?{झा शास्त्री}--भवन - निर्माण के समय "नैऋत्यकोण "अर्थात दक्षिण एवं पश्चिम जे बीच का भाग -के देवता नैऋति हैं तथा स्वामी ग्रह राहु एवं केतु हैं |यहाँ का तत्व पृथ्वी है | यह दिशा नेतृत्व ,कंट्रोल ,स्थायित्व प्रदान करती है अर्थात -वास्तु का स्थान यही है | यहाँ सबसे भारी ,सबसे ऊँचा निर्माण ,सबसे ऊँचा फर्श का लेवल होना चाहिए | इस दिशा का पूरी तरह ढका एवं बंद होना स्थिरता के साथ -साथ भाग्य को भी बुलंद करता रहता है |
      नोट -इस दिशा में सही निर्माण नहीं होने से लोग अस्थिर रहते हैं एवं भाग्य भी सही साथ नहीं देता है -अतः निर्माण के समय अवश्य ध्यान दें |
    --------पश्चिम दिशा ---के देवता -वरुण हैं तथा स्वामी ग्रह "शनिदेव "हैं | यह दिशा सामंजस्य ,प्रेमप्रदाता और न्याय बुद्धि के दाता होती है| यहाँ के फर्श का लेवल तथा भवन की ऊँचाई पूर्व दिशा के अनुपात ऊँचा होना सही रहता है | पूर्व दिशा की अपेक्षा भारी निर्माण होना चाहिए | साथ ही साथ पूर्व दिशा की अपेक्षा कम खुली जगह वास्तु सम्मत है |
    ---भाव -जब भी निर्माण भवन का करना हो तो ये शायद काम आये -पश्चिम दिशा में निर्माण करते समय इस बात पर ध्यान देने से मन शांत और सही राह चलने की क्षमता रहने वालों को सदा मिलती रहती है |
   प्रेषकः ज्योतिष सेवा सदन {मेरठ -भारत }---,<a>www.facebook.com/astrojhameerut</a>
निःशुल्क ज्योतिष सेवा मित्र बनकर एकबार अवश्य प्राप्त करें रात्रि -7 से 9 में केवल फ़ोन से -किन्तु ऑनलाइन होना अनिवार्य है | संपर्क सूत्र 09897701636 +09358885616

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें